उमड़ा मजदूरों का रेला

लॉकडाउन के चौथे दिन शनिवार को देशभर में मजदूरों का अपने-अपने घर के लिए पलायन एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई कदम उठाए हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यों से मजदूरों की मदद करने, उन्हें नहां हैं वहीं रोकने को कहा है। फिर भी पलायन रुक नहीं रहा है।


दिल्ली-एनसीआर का हाल सबसे बुरा है, जहां मजदूर, रिक्शा चालक और फैक्ट्री कर्मचारी अपने-अपने गांव की ओर लौटने के लिए हजारों की तादाद में निकल पड़े हैं। सिर्फ दिल्ली एनसीआर नहीं, बल्कि देश के दूसरे छोटे-बड़े शहरों से भी लोगों का पलायन जारी है। चाहे वो अहमदाबाद हो, जयपुर हो, कानपुर हो, सोनीपत हो या फिर सिरसा, आगर, मालवा।


पलायन कर रहे मजदूरों का कहना है कि खाना नहीं है, काम नहीं है, मर जाएंगे यहां। मजदूरों को कोरोना से संक्रमित हो जाने की कोई चिंता नहीं है। किसी दूसरे को संक्रमित कर देने का अंदेशा भी नहीं है। इन्हें बस घर जाना है। इसीलिए बस में कैसे भी टिक जाने की बेताबी है।


दिल्ली के आऩंद बिहार बस बड्डे पर मजदूरों का ऐसा ही रेला है। जेबें खाली हैं, परिवार को पालने कि चिंता ने चाल में रफ्तार ला दी है। मजदूरों को मालूम है कि रास्ते बंद हैं। बसें और ट्रेन बंद हैं...फिर भी चल पड़े हैं पैदल। ऐसे एक नहीं हजारों हजार मजदूर हैं। ताज्जुब ये है कि देश के नीति नियंता इन मजदूरों को समझा क्यों नहीं पा रहे हैं कि ये जहां हैं वहीं रहें। इनके दिलों में सरकारें ये भरोसा क्यों नहीं जगा पा रही हैं कि इनके खाने पीने की व्यवस्थाएं हर हाल में होंगी। सरकारों पर इन्हें ऐतबार क्यों नहीं है कि लॉकडाउन में भूखा नहीं मरेगा इनका परिवार।


राजनेता उन उद्योगपतियों, नियोक्ताओं पर भी कड़ाई क्यों नहीं कर रहे हैं, जिनके यहां काम कर रहे मजदूर पलायन को मजबूर हो रहे हैं।